5/21/2020

मुझे भी जिंदा होने का मन करता है

मेरे मुल्क की आधी आबादी
तुम जिंदा हो
इस बात का जिरह नहीं करना मुझको की तुम कहाँ हो
तुम सबरी माला में हो
या शाहीन बाग में
बस ये जान कर सुकून हुआ
तुम जिंदा हो।
और उस वक़्त में
जब मुल्क को जागने की जरूरत है
तुम मशाल लेकर निकल पड़ी हो
अब मुझे इस बात पे भी जिरह नहीं करना है
तुम क्या क्या कर सकती हो
तुम खेत खलियानों को सींच सकती हो
अपने लहू से भविष्य ही नही वर्तमान भी सींच सकती हो
मुझे इस बात का भी जिरह नहीं करना है
कि तुम किसके बराबर हो
तुम किस मशले पे संघर्ष कर रही हो
तुम निर्भया की वीर माँ हो
या अपने ही घर मे दहेज लोभियों से लड़ रही हो
मुझे सुकून है
तुम जिंदा हो
और उस वक़्त में
जब मुल्क अपनी आंखों पे काली पट्टी बंधे
न्याय के इंतज़ार में खड़ा हैं।
तुम जिंदा हो
इसलिए मुझे अब ये भी जिरह नहीं करना
कि मुर्दों के मुल्क में
मुल्क क्यों जिंदा है।
मेरे मुल्क की आधी आबादी
तुम जिंदा हो
मुझे भी जिंदा होने का मन करता है।



1/16/2019

सत्ता


हमें नोंचने
 मर्जी थोंपने
सब आयें हैं बारी बारी
कोई हमारा हाल न जाने
खुशहाली लाबे की
सत्ता करें तैयारी
कोई न पूछे
 क्या अच्छा है मेरे लिए
ए सी कमरों ने
तय कर दी है
हमारी जिम्मेदारी,
हमे चाहिए रोटी और तरकारी
सत्ता कहे राम मंदिर
है सब की भलाई
हमे चाहिए रोजगार
सत्ता कहती हैं गाय गाय,

हमे नोचने
हमे लूटने
सब आये हैं बारी बारी
खेत हमारे उजड़ रहे
भूख से  हम मर रहें
वो करतें हैं
बार बार
कुंभ की तैयारी।
हमे लड़ाते
हमें बाटते
फिर दिखावे
यूनिटी की स्टेचू ।

हमें जीतने
हमे पीटने
सब आये हैं बारी बारी
कोई हमारा हाल न जानें
अच्छे दिन लाने की करें तैयारी
हमें चाहिए शिक्षक
हमें चाहिए अनुसंधान
सत्ता कर रही हैं
गौ मूत्र पिलाने की तैयारी,
हमें नोंचने
 मर्जी थोंपने
सत्ता बन चुकी हैं बड़ी बीमारी।

9/22/2018

अकेला पेड़


नीला आसमान चिढा रहा है
अपनी ऊँचाई पे आज
और क्यों न चिढ़ाए
मैं जमींन पे जमींन में धस्ता जा रहा हूँ
एक पिलपिलती हुई सड़क पे मैं चल रहा हूँ
महान हिंदुस्तान की गोद में
कीचड़ में सन कर
पर मैं आह्लादित हूँ अपने अतीत की जड़े खोदकर
और आज के यक्ष प्रश्नों को अनंत काल तक टाल कर
मैं अपने पैरों को कीचड़ में और अंदर तक धँसाना चाहता हूँ
और पिसल कर अपने पूरे बदन को
पर मैं नही कर पा रहा हूँ
अनंत काल पे धकेले गए प्रश्न मुझे रोक रहे हैं।
कुछ एक अकेले पेड़ मुझे देख रहे हैं
मानो मुझ से अपने अकेलेपन का हिसाब माँग रहे हों
और मैं उन्हें टाल पाने में भी असमर्थ हूँ
लोकतंत्र के महान नेताओं से मैंने अभी तक कुछ नहीं सीखा हैं
बस मैं स्कूल के उस बच्चे की तरह हूँ
जो अधूरा उत्तर जनता हैं और कतराता है कुछ भी कह पाने से
और मैं उस अकेले पेड़ को समझता तो भी क्या समझता,
विकास की कहानी वो समझ भी तो नहीं पाता
और मैं अपने कीचड़ में सने पैरों को भी उससे छुपा नहीं पा रहा था
मुझें डर भी था
कहीं वो भी न मुझे चिढाने लगे
और विकास को बदनाम करने का आरोप मुझ पर लगने लगे।
मैं अब अपने पैरों को लेकर मेट्रों में जाने की हिम्मत जुटाने में लगा हूँ
कहीं विकास अपमानित न महसूस करने लगे
और विकासशील देश को रोकने का आरोप मुझ पर न लगने लगे
आखिर विश्वगुरु होने का दंभ लिए
देश अकेला तो नहीं चल सकता हैं
और मैं देशभक्ति की आंधी में
अकेला नही पड़ सकता हूँ
उस अकेले पेड़ की तरह
आखिर में मैंने उस पेड़ को भी देशभक्त पेड़ समझ कर उसके अकेलेपन के दर्द को
देश की विकास में भूल गया हूँ
जय भारत जय विकास के नारे से
खुद को स्वच्छ कर मेट्रो में सवार हो गया हूँ
और आसमान को मुँह चिढाने
लोकतंत्र के महान नेताओं के
टालने के गुणों को अपना कर
मेट्रो से उतरने का इंतज़ार कर रहा हूँ।



9/02/2018

अकेलापन



घोर अकेलापन है साथी
साथ में ज़ुल्मतों के दौर का होना
और बीच बीच में मेरा तुम्हारा साथ छोड़ देना
दुविधा जगाती हैं
हर सुबह सूरज का उग जाना।

घोर अकेलापन हैं साथी
साथ में तेरा रूठ जाना
और मेरा तुम से लड़ जाना
दुविधा जगाती हैं
प्यार के मौसम का होना।

काफी नहीं हैं साथी
विरह की लपट से
सिर्फ हम दोनों का बच जाना
काफी नहीं हैं
हम दोनों का प्यार में होना,
हमें जल्दी मान लेना होगा साथी
माकूल नहीं हैं
हम दोनों का खुद में डूब जाना
मेरी बैचैनी को तुम्हारा सम्हाल लेना
तुम्हारी बेचैनी को मेरा सम्हाल लेना
और मुनासिफ भीं नहीं हैं साथी
हम दोनों की बेचैनी का मिट जाना।

हमें सच को जल्दी अंगीकार करना होगा प्रिये
इश्क़ का अभी सहर नहीं हैं
मोहबत के लिए खड़ा कोई मजहब नहीं हैं
हर धर्म हमारे प्यार के खिलाफ खड़ा हैं
हर अंध हमारा दुश्मन हैं।

सिर्फ हमारा मिल जाना
सब कुछ हासिल नहीं है प्रिये
तुम्हारा नेह होना सिर्फ काफी नहीं प्रिये
विरह वेदना समाज की कुरुरता की निशानी है
ऐसे में हम दोनों का मिल जाना
सिर्फ आधा सच हैं
पूरा सच हर धड़कन में
मरा पड़ा है
हर जर्रे में दफ़न हुआ हैं
और सुबह का सूरज
अकेलेपन से उपजे अंधेरे को
और गहराता हैं।



3/29/2018

सत्ता दंगा , दंगा सत्ता

मैं आज भी उतना ही सच हूँ
जितना कल तक दुनियाँ मान नही पाती थीं
हर सच्ची बातें
जो दुनियाँ को मैं कहता हूं
उतना ही झूठ मैं खुद से कहता हूं
मैं नेता हूँ
लो आज मैं झूठ हूँ
उतना ही
जितना कल तक सच था
कल तक मैं गुजरात था
आज मैं बिहार हूँ
हाँ, मैं वहसी दंगा हूँ
आज भी मेरे अंदर
सब को जलाने का जुनून हैं।
मैं फेंका गया मांस हूँ
जो खून की प्यासी हैं
बस मंदिर पे गाय हूँ
और
मस्जिद पे सुअर गंदा हूँ।
मैं सत्ता हूँ
सत्ता पे काबिज झूठ हूँ
शोषक, बेखौफ ,बेलगाम
हाँ मैं पहरा हूँ
सृजन की शक्ति पर
सृजन की सोच पर।
मैं ही गुजरात हूँ
मैं ही बिहार हूँ
मैं आदमखोर हूँ
मासूमों के खून से
मेरी जड़ें मजबूत हुई हैं
इतिहास गवाह है
मैं अत्याचारी गुरूर हूँ
मैं राम के नाम का सौदागर हूँ
मैं मंदिर- मस्जिद की कुव्यवस्था हूँ
हाँ मैं आज भी उतना ही सच हूँ
मैं स्कूल नहीं हूँ
मैं लाइब्रेरी नहीं हूँ
मैं रोजगार नही
मैं विकास भी नहीं हूँ।

3/07/2018

बंद कमरे

बंद कमरे में
इन बहरी दीवारों के संग रहकर
मैं भी बंद हो गया हूँ
अब जो कुछ भी मेरे अंदर पहुंचती है
उन पुरानी किताबों से
जो बहुत पुरानी बातें करती है
या मुझे झूठी दुनिया का दर्शन करवाती है
और जो कुछ नया ताजा 
मेरे अंदर प्रवेश पाना चाहता है
छानने लगती हैं
परीक्षाओं की छन्नी से
और छण कर जो मेरे अंदर पहुंचती है
मुझे कुछ नया नही करती है
मैं अपनी उद्वेलना को
बंद कमरे में दफन कर बाहर निकलता हूँ
बाहर की दुनिया जो जीवित है
और जीवित होने का स्वांग भी कर रही है
पर, मैं बंद कमरे का आदी हो चुका हूं
चीखती आवाजें मेरे भीतर की दीवार को
भेद नही पातीं हैं।

10/31/2017

कच्ची रोटी



मैं एक ऐसी कहानी का हिस्सा हूँ 

जो मेरी नहीं हैं

मेरी जिंदगी वैसी बिल्कुल नही हैं 

जैसा मानना मेरी आजादी हैं।


इस कहानी में मुझे तर्क करने की आजादी है

मेरी मर्ज़ी से सांस लेने की भी

पर शर्त इतनी हैं 

मेरी सांसों से उनकी जड़ें न हिलतीं हों

शाखाओं का हिलना कल तक सहन था

अब उस पर भी लगा दी पाबंदी है।


मर जाने पे मुझे जलने देंते हैं

पर कहाँ जलूं जगह तय हैं

ताकि पवित्रता नष्ट न कर सकूँ

ऐसे इस कहानी में 

चीजों को पवित्र करने की परंपरा है

कुछ बुदबुदाना पड़ता है

पर बुदबुदाने की मुझे आजादी नहीं हैं।


मैं तब तक अच्छा हूँ 

जब तक बंद कमरे में हूँ

जब तक भूखा हूँ और

भूख को भूखा रखने में मददगार हूँ

जब तक गलत को सही कहूँ 

जब तक असामनता बनाये रखने दूँ।


मुझे सब कुछ देखने 

सब सुनने और

उफ्फ न कहने की आजादी है

और अपना शासक चुनने की भी आजादी है

और मैं शराब के बदले वोट बेचता भी नहीं

पर मैं भूखा हूँ

और मेरी भूख वरदान हैं 

उन सब के लिए

जिनका पेट ठूंसा हैं।


भात मांगना तो मौत हैं

भीख मांग लूं इतनी आजादी हैं

मैं भूखा हूँ

मुझे आजादी नहीं

अपना हक मांगने की

भूखा मर जाऊं

इतनी आजादी हैं।


मेरी जमीन मुझसे छीन ली हैं

सारे संसाधनों पर भी कुछ का कब्ज़ा हैं

और मैं ही दोषी हूँ

अपने हालात के लिए

मेरा ऐसा मानना ही मेरी आजादी हैं

इस से परे अधर्म हैं

पाबंदी कुछ भी नहीं।


मैं तो अब सिर्फ रोटी हूँ

एक ऐसी रोटी 

जो कच्ची हैं

और भूखी हैं।


11/24/2016

महबूब तू तो बदल

प्यार तो करता हूँ
जैसा मैं चाहता हूँ
जैसा तुम चाहती हो
पर इस अँधेरे में जीना कैसा
जहाँ सपने भी दिखाई न देते हों।
कुछ दूर चालना
बहुत देर रुक जाना
मेरा दोहरापन थकने का नाम ना लेता है
यूँ तो भरा हूँ बदलाव के छावँ से
लेकिन बदलाव मुमकिन नहीं मान बैठा हूँ
और घर से निकला ही नहीं।
प्यार इंतज़ार कर
महबूब तू बदल जिन्दा हो
मुझे लाश होने से बचा ले,
मेरे दोहरेपन को हवा न दे
मेरा दोहरापन यूँ भी कहाँ थकता है।

नदी को बहने देना ही मेरा मकसद है
तू मत सोच की नदी उलटना चाहता हूँ मैं
साथ चल देख
क्या नदी बहती है अभी।

रुकी हुई जो धार अभी
उसका क्या
कुछ भी नहीं
रुके रहने दूँ
जैसे रुकी थी
मेरे महबूब उसकी कड़वाहट तू महसूस तो कर
चल मेरे संग दो घुट लगा
उस रुकी हुई तालाब की भी
जो कभी बही ही नहीं।

11/15/2016

लाल

बेड़ियाँ तोड़ कर फेकने की जरूरत  है
आवाज अगर उठाई है किसी ने तो आवाज बढ़ाने की जरुरत  है
साथ चलने का वादा करो तो कुछ देर नहीं मंजिल तक साथ चलो
मंजिल मिलेगी मंजिल दिल में स्थापित करो
फिर कोई चले न चले तुम चलते रहो।
आग जली है तो गरीबी, भूख, दर्द, बेरोजगारी को आहूत करने की जरुरत  है
अब अगर कोई जुमला निकले तो जुमला कुचलने की जरुरत है
जब भूख अब खुद को आहूत करने को आतुर है
नायक की तब किसे दरकार है
भीड़ की हर आवाज को मिलकर नायक बनने की जरुरत है।
काला नाग फन फैलाये गरीबों के आँगन में हैं
अब हो चुकी मुहीम जब नाग को निकलने की
गरीबों के खून की जरुरत है
जब खून बहने को तैयार हो चूका है
हर नाग को खून में डुबाने की जरुरत है
अब हर आँगन को लाल की जरुरत है।

काले नाग भेष बदलने में माहिर है
ये  याद रखना होगा
एक मुंड है पर फन तो हजारों है
कोई फन स्वर्णिम मोहकता लिए है
कोई फन मिट्टी की खुशबू
कोई फन विद्या के मंदिर में है
कोई फन अस्पताल का रूप लिए है
कोई फन जनता की आवाज बनी है
कोई फन भगवन के घर में है
कोई फन संसद की सीढियाँ चढ़े है
कोई फन हमारा सबकुछ कब्ज़ा करे है
कोई फन फनकार बने है
हर फन को पिघलाने की जरुरत है
अब खून का कतरा कतरा आग बन भड़क उठे
हर फन को ढूंढे और जला कर आगे बढे
आवाज उठाई है किसी ने तो आवाज बढ़ाने की जरुरत है
रोते रोते ही सही भूखे भूखे ही सही
फटे हो कपडे तो फ़टे कपडे ही सही
सब जब नाग कुचलने को आतुर है
अब बीच में कोई हमारे आंसू की दुहाई देकर नाग का पोषक बन जाये
कोई अगर नाग के किसी भी फन को जलने से रोकने की कोशिश करे
कोई अब अगर जुमला बन जाये
हर किसी को गर्म लहू से पिघलाने की जरुरत है
अब हर मानस को मंजिल तक चलने की जरुरत है।

अब रुकने को आगर नायक भी कहे
जनमानस को रुकने की जरुरत नहीं
हर काले फन को जलाकर
न्याय स्थापना की जरुरत है
होने लगे अगर आग कम लीडर में भी
बनने लगे हितैसी किसी भी काले फन की भी
लीडर को भी जला आग खुद में भरने की जरुरत है
अब हर आँगन को लाल की जरुरत है।

10/07/2016

गोडसे तुम हारोगे



हारोगे ही गांधी के हत्यारे !
तुम्हे जीना ही होगा मुँह छुपाके,
ये धरती सत्य की है,
झूठ तुम ढँक  ही जाओगे।
महात्मा की करुणा में,
जब तुम निर्मल न हुए,
प्यार और श्रद्धा में,
जब तुम पावन न हुए,
गोडसे तुम्हें  हारना ही होगा,
चाहे जहाँ जिस में रहो। 
मानवता मोहताज नहीं
भीड़ की ,
सत्य को दरकार नहीं
चीख की ,
एक अकेला "विक्रम" बोलेगा ;
गुंजायमान हो उठेगी धरा,
इस युग में  उस युग में।
तुम्हे धूमिल होना ही होगा,
क्षणिक चमक खोना ही होगा,
सत्ता की प्रश्रय में रहो या,
भीड़ की दीवारें खड़ी कर लो।   



9/01/2016

अजनबी मुलाकात

कोई कोई अजनबी मुलाकात हो जाये
कोई लम्हा आकर मुझसे कहे
तुम्हे देखु मन मचले दिल वही ठहर जाये
तुम्हारे पैरों की थापथपहत मेरी धड़कनो को आवाज दे
कोई ऐसी अजनबी मुलाकात हो जाये।

कोई ऐसी अजनबी मुलाकात हो जाये।
मेरे अंदर जो आग है वो दफ़न  न हो
तुम्हारे अंदर की शीतलता  बनी रहे
मुझे तपिस मिले तुम्हे नमीं मिले
कोई ऐसी अजनबी मुलाकात हो जाये।

रंगों का उतावलापन मुझ में दीखता रहे
कुछ न बदले न तुम्हारा रंग न  मेरा रंग
जमाना भी वहीँ सिमटा रहे
कुछ हलचल न हो
मेरा मिटना बस बढ़ता रहे
तुम्हारा मिटना बस बढ़ता रहे
हमारा बनना बस चलता रहे
कोई ऐसी अजनबी मुलाकात हो जाये।
 हो जाये
कोई लम्हा आकर मुझसे कहे
तुम्हे देखु मन मचले दिल वही ठहर जाये
तुम्हारे पैरों की थापथपहत मेरी धड़कनो को आवाज दे
कोई ऐसी अजनबी मुलाकात हो जाये।

कोई ऐसी अजनबी मुलाकात हो जाये।
मेरे अंदर जो आग है वो दफ़न  न हो
तुम्हारे अंदर की शीतलता  बनी रहे
मुझे तपिस मिले तुम्हे नमीं मिले
कोई ऐसी अजनबी मुलाकात हो जाये।

रंगों का उतावलापन मुझ में दीखता रहे
कुछ न बदले न तुम्हारा रंग न  मेरा रंग
जमाना भी वहीँ सिमटा रहे
कुछ हलचल न हो
मेरा मिटना बस बढ़ता रहे
तुम्हारा मिटना बस बढ़ता रहे
हमारा बनना बस चलता रहे
कोई ऐसी अजनबी मुलाकात हो जाये।

11/03/2015

"पर सियासत इसपे डोरे डालता है"

रात इतनी खामोश है या इसमें भी कुछ स्वर है
गहरे सन्नाटों में भी क्या कोई हलचल है
तेज चलती सांसें भी कुछ कहने को आतुर है
झुकी पलकों का इशारा सब राज खोलती हैं
हम भी नादाँ वो भी चुप हैं,हमारी आहें सब बोलती हैं .

अपनी ख़ामोशी रातों के सन्नाटें इतनी जल्दी कैसे टूटे
मासूम खिलखिलाहट वादियों में कैसे गूंजे
सभी यहाँ मानवता के हत्यारें हैं
जब कोई लाठी(न्याय ) उठे कोई सर कैसे ना फूटे
मासूम सा रिश्ता हमारा मासूम हल चाहता है
सुना है बातें बड़ी समस्यायें तोड़ती है.

रात इतनी खामोश है या इसमें  कोई साजिस है
गहरे होते सन्नाटे में भी क्या कोई बैचैनी है
तेज चलती सांसे भी कुछ सहमी सहमी है
झुकीं पलकें है या ऑंखें ही फूटी है
मासूम रिश्ता हमारा मासूम हल चाहता है,

मासूम सवाल भी अब हिलोरें मरना चाहता है
कहाँ है वो पालक जिसने पालक होने का दावा किया है
इन्सान भले ही किसी को माने  पर पालक तो वही हुआ है
मासूम सवाल मासूम हल चाहता है.

नादान है ये रात जो शांत होने का दावा करती है
ख़ामोशी से भरी आवाज भी चीत्कारों से भरी है
ख़ामोशी चीखती है सहमी निगाहें खुद में गिरती है
ढूँढती है असंख्य निगाहें अपने पालक  को
पर लाशों के ढेर पर बैठा हर कोई यहाँ
लज्जित कोई आये तो कैसे आये .

नादान ये रात है जो अब भी खामोश है
ये सन्नाटों की साजिश है जो बैचैन नहीं है
ख़ामोशी से भरी आवाज भी चीत्कारों से भरी है
मासूम रिश्ता हमारा मासूम हल चाहता है
पर सियासत इसपे डोरे डालता है.

11/01/2015

Meri dhadkan ne meri 
uljhano ka majak banaya hai
Dard kyon hai,use pata hai
Meri Uljhano ka wo bhi ek hissa hai
Meri uljhan meri tarp fir na jane kyon
 uskee hiloron ka hissa hai.
Kise apna manu jiske sang mai samadhi ko paa lun
Sach mera hissa tha kal tak
Aaj jhuth mere mathe pe tika hai.
Ro ro kar apne aap ko nirmal
kab tak karta rahun
Apni dhadkan ko kab tak
aapni chahat ka hisaa rakhun
Aaj ye uljhan hai aan padi hai
Dhadkan ko hi jivan samjhun
Yaa use jivan ka hissa rakhun.
Kas meri dhadkan ki dhun mere dhun se mil jaye
Ho kar rami mere sang chale .
Meri uljano ko suljhaye.

उम्मीद



बार-बार ठुकराये जाने को मै
चले आता हूँ तेरे पास प्रिये ,
तुम झिड़क देती हो ,चला जाता हूँ मै
मुझे मेरा खो जाना है स्वीकार प्रिये.

अपने आप को समर्पित कर जाने को मै
अपना जीवन उपहार लिए आता हूँ मै
दर्द पाने को बारम्बार प्रिये
अपना कल मुझे खो जाना है स्वीकार प्रिये .

आंखे मूंद तुझे पाने को मै
तेरे पीछे बेतहासा भागा आता हूँ,
ठोकर खा कर गिर जाने जाने को बार-बार प्रिये
अपना समूल नष्ट हो जाना है स्वीकार मुझे .

दिल का एक कोना अँधेरे में है
उस कोने में डूब जाना स्वीकार मुझे,
बार-बार ठुकराये जाने को मै
चले आता  हूँ तेरे पास प्रिये. 

1/24/2015

“ क्या लिखूं “


    क्या लिखूं?

जीवन के हर हिस्से पर
लहु के हर कतरे पर
स्वप्नों के हरेक सांस पर
तेरा अधिकार लिखूं
दर्द लिखूं या हर्ष लिखूं
प्रिये लिखूं या जान लिखूं
तू मुझ से इतर कहाँ है
मै तेरा हूँ तू मेरी है.
  
  क्या लिखूं?

उलझन लिखूं या समाधान लिखूं
तड़प लिखूं या प्रशांत लिखूं
मेरे हरेक गीत हर टूटी पंक्तियाँ तेरी है
तू मुझ से इतर कहाँ
मै तेरा हूँ तू मेरी है
तू मेरी प्रेरणा मेरी हमजोली है
मेरी अंधभक्ति मेरी सहनशक्ति है
तू मुझ से इतर कहाँ
मै तेरा हूँ तू मेरी है.
   
   क्या लिखूं?

फ़क़ीर लिखूं कबीर लिखूं
मदिरा लिखूं अजान लिखूं
मीठी थपकी लिखूं आग लिखूं
तू मुझ से इतर कहाँ
मै तेरा हूँ तू मेरी है
  
   क्या लिखूं?

कंगन की हथकड़ियाँ लिखूं
पायल की बेड़ियाँ लिखूं
समझौते का सागर लिखूं
सिंदूर का स्वांग लिखूं
सम्मानित चौखट की लकीर लिखूं
एक पिंजरे के बदले दूसरा पिंजरा लिखूं
   
   क्या लिखूं?

आजादी तुझे दान लिखूं
दुर्गा लिखूं शक्ति लिखूं
लाल चुंदरी का फास लिखूं
लक्ष्मण रेखा लिखूं
अग्नि परीक्षा लिखूं
सभ्यता संस्कृति का बखान लिखूं
   क्या लिखूं?
 

1/17/2015

कुछ तो असर होगा तेरा





अजनबी थे बेहतर
सोचा करता था मगर

इतना सुकून कहाँ था
कुछ तो असर होगा तेरा
तेरा होने का.

कि स्थिर हुआ जाता है अब मन
व्यथित जो घूमता था कल तक
कुछ तो असर होगा तेरा
तेरा होने का.

ख्वाब के पंख थे
उड़ने की कोशिश में रहता था

मगर ख्वाब में जान अब आई है
पाँव टिकने को हैं अब जमीं पर
कुछ तो असर होगा तेरा
तेरा होने का

बेतरतीब सी जिन्दगी का मालिक था मै

रात-रात भर जगा करता था
मगर सुबह सोने का मतलब अब बनता है
कुछ तो असर होगा तेरा
तेरा नेह होने का..... 

9/27/2014

मेलवा के रंग,संग पेटवा के भूख

आज मेरे घर चुल्हा नहीं जला                                       
मै तो ख़ुश हूँ,बाहर लगे मेले हैं
फिर माँ के माथे पे
क्यों ये लकीरें हैं।                                                                  
कल जब जलेबी मांगा था तो
बाऊ ने कहा था जलेबी खाओगे तब
खनमा किस पेट मे खाओगे।
मैंने कल से ही सोच रखा है
क्या-क्या मैं मेले में खाऊँगा,
दम भर ठूँस कर जलेबी खाऊँगा  
जब मिठका से अघा जाऊंगा,
तब फूचका से मुँहा के स्वादवा बदलूँगा
फिर कुछ रंगल लेमानचुसवा लूँगा,
खूब देर चूस-चूस जीभ लाल-हारा करूंगा
फिर शान से जीभ निकालूँगा
कल सरवा ललन खूब चिढ़ाया था,
आज मै उसे खूब चिढ़ाऊंगा।
मै उत्सुक जिज्ञासा की परिधि में घिरा
उछल-कूद माँ-बाऊ के पास जाता
कब चल रहें हैं हम मेलें में
हर घड़ी बदलती,
मैं अनुमान लगाता रहा।
मैं ख़ुश हूँ फिर भी बहुत,
बाहर लगे मेले हैं।
मेरी आवाज अब भर्राने को थी
सब्र का बाँध अब टूटने को था
कोमल मन अब पिता से रूठने को था
मेले जाने की इच्छा पे अब,
पेट की भूख जीतने को थी
तभी घर मे हलचल बढ़ी
माँ भन्सा-घर की ओर बढ़ी
मै सरपट भागा उन्हे रोकने को  
माँ आज चूल्हा मत जलाओ,
आज कम से कम आराम तो करलो
मै अभी भूखा नहीं,
बाहर लगे मेले हैं
भले ही संझिया को चलना
मै इंतज़ार कर लूँगा
तभी माँ भन्सा-घर से बाहर निकली
मेरे चेहरे की दमक बढ़ने लगी
फिर माँ के माथे पे
क्यों ये लकीरें हैं।                                       
                      




Note-Part of artwork is borrowed from the internet ,with due thanks to the owner of the photographs.

9/24/2014

"ड्स्ट्बीन के सहारे स्वर्ग"

तुम गरीब क्यों जिंदा हो,अमीर शर्मिंदा है

तुम कुड़े भी चुरा लेते हो,अमीर शशांकित जीता है
ये तुम्हें कुड़े देकर अहसान न जता पाते है
तुम मे क्यों कुड़े चुराने का   हौसला है ।
अपनी तिजोरी को बचाने मोटे ताले बनाए है
तुम्हारे जीने की जीविवसा से डर कर
धर्म, पूर्व-जन्म के कर्म-फल के पहरे लगाए है
तुम्हारे हौसले पे अब क्यों न धर्म का पहरा है।
तुम भीख मांगते कितने अच्छे हो, कोई जेल-बेल नहीं है
मोटे बटुए को भी  धर्म कर कितना सकूँ मिलता है
सर झुका कर जियो भूखे तड़पो चाहे मर जाओ
मोटी तिजोरी को न देखो धर्म करो स्वर्ग जाओ ।
तुमने कुड़े चुरा कर घोर पाप किया है
मरने पर नर्क जीते जी घुट-घुट कर जेल जाओ
तुम गरीब क्यों जिंदा हो,अमीर शर्मिंदा है
तुम कुड़े भी चुरा लेते हो,ये अमीर शशांकित जीता है।
सहजादे की नजर उतरवाने हलुआ-पूरी तुम्ही तो खाते हो
और तुम्हारे लिए ही तो ड्स्ट्बीन मे पड़ा खाना है
फिर क्यों कुड़े चुराते हो,अमीर नाजुक धर्मी को डराते हो
वो कुड़े यूं भी तुम्हें दान कर देते कुछ तस्वीर खिचवाते
तुम्हारी गरीबी का बाज़ार सजता, कुछ तिजोरी भर जाती
अमीरज़ादे तुमपे प्रोजेक्ट-वर्क करते,कुछ टूटीपंक्तियाँ लिखते  
देखो न अदना सा “प्रशांत”भी कवि बन जाने को कैसे आतुर दिखता है।

9/08/2014

धुकधुकी

नारी आज भी तुमको छूपना पड़ता है,
हो निर्णय तुम्हारा कितना भी उचित
सवालों से वार किया जाता है.
अँधियारे मे गर तुम रोशनी बन चमक जाती हो,
तुम्हारी चमक को बुझाकर फिर से जलाया जाता है.

नारी आज भी तुम्हारी आजादी अपनी नहीं है,
तुम से अधिक महत्व हिजाब को दिया जाता है.
कुमकुम तेरे माथे पे सजाया जाता है,
तेरी मासूमियत पाजेब की जंजीरों से बंधा जाता है.
तेरी धुकधुकी बनी रहे हमेशा,जाल फ़ैलाया जाता है। 


7/07/2013

''तुम सब लड़ो दोनों देशद्रोही सत्ता में रहेंगे''

अयोध्या में मन्दिर मेरे खून पे बनेगा
अयोध्या में मस्जिद मेरे खून पे बनेगा
एक तुम से तेरा खुदा मंगता  है
एक तुम से तेरा राम-लल्ला मंगता है
दोनों आपस में कभी ना लड़ेंगे
तुम सब लड़ो दोनों देशद्रोही सत्ता में रहेंगे

अगर रख नही सकते अपने दिल में राम को
अगर रख नही सकते अपने दिल में खुदा को
तो अपने-अपने हिस्से का राम निकालो
आओ भाई तुम भी अपना खुदा लाओ
अपना-अपना बोझ तुम उतारो
राम भी भारी है अल्ला भी भारी
करने हैं जो सारे पाप पापी
कैसे ढो पओगे आपने साथ ये सारथी साथी

आओ अपने हिस्से का राम लाओ
आओ अपने हिस्से का खुदा निकालो
उसको अयोध्या में बिठा लाऊं
तुम सब लड़ो मुस्सल्मन मारो
तुम सब लड़ो हिंदू जलाओ 
रहने दो सत्ता में राम-खुदा के पापी.

जो रख सकते हो
अपने साथ अपना राम सारथी साथी
जो रख सकते हो
अपने साथ अपना खुदा  सारथी  साथी
लेकर घुमो अपने दिल में
अपना-अपना सारथी साथी
क्या करना तब अयोध्या या काशी

करने है हम सब को काम काफी
स्कूल बनवाने हैं ज्ञान फैलाने हैं
अस्पताल बनवाने हैं बंदों को सँवारने हैं
रोटी उपजानी है भूखों को खिलना है
हर आँगन में खुशी के फुल खिलने है
अभी खाना है कहाँ जो  चैन साथी
अपना राम अपना खुदा सारथी
तब क्यों देना इन रंगे सियारो को अपना हाथ साथी

अभी अगर आयें ये अल्ला-राम के सौदागर
सत्ता के लिए देश को गिरवी रखने वाले कायर
उनसे कह देना मेरा राम ले सको तो ले लो
उनसे कहना मेरा खुदा ले सको तो ले लो
वो तुम देशद्रोहियों से ना सम्हल सकेगें
उन्हें दिल में रहने कि आदत है
वो तेरे छोटे से मन्दिर में ना रह सकेंगे
उन्हें जन्नत जैसे वादियों में रहना है
वो तेरे खोटे से मस्स्जिद में क्या करेंगे
मानवता के दुश्मन अपने-अपने राम-खुदा निकालो
उसको मन्दिर में बिठाओ उसको मस्स्जिद में सजाओ
मेरा राम तो मुझको प्यारा है मेरा खुदा मुझको दुलरा है
उसको मन्दिर-मस्स्जिद कि आदत नही मेरे दिल कि आदत है
मै उसके बिना वो मेरे बिना  रह ना सकेगा

आओ लड़ने लड़ाने-वालों आपने-अपने हिस्से का खुदा- राम निकलाओं
आपस में लड़ो और मर जाओ
देश को अब बक्शो छूने दो बुलंदी को
जीने दो देश भक्तों को बनने दो विश्व-शक्ति
तेरे राम-खुदा हम अपने दिल में बसा लेंगें
तुम दोनों ना होगे तो पुरे देश को

मन्दिर-मस्जिद सा पवित्र हम बना देंगे.

6/14/2013

"गोपियाँ क्या करें "


गली गली हर चौराहे पर 
बाल बचपन ज़िन्दगी के दोराहे पर 
यहाँ हर कोई मुरलीवाला है 
अब गोपियाँ  बेचारी क्या करें 

किसके लिए सुध-बुध खोये 
किसको स्वामी मान मान जीवन सुख भोगे 
बड़ी व्यथा है बड़ी उलझन है 
एक नहीं अब यहाँ सभी गिरिधर हैं 

प्रश्न  उठता हो उनके भी मन में 
बदला है दौर अब वो क्या करे वृंदावन  में 
बदल गया है प्रेम बीते कल का वो क्या करे 
प्रेम की नई परिभाषा गढ़े या जिया बन जीवन त्याग करे 

बाँटने  को तो खुद को वो  बाट दे 
पर मन की  अधीरता क्या करे 
जब  तक ना मिले मन असली मोहन से 
वो हर नकली मोहन का क्या करे. 


2/01/2013

"शब्दों को मिटा दें "


आग उगलते शब्द 
शब्दों से ही जलते हम 
शब्द के सहारे हैं सारे 
प्यार भी है शब्द 
नफरत भी है शब्द 
हम से शब्द जाने हैं 
शब्दों के सहारे आज 
आओ नफरत की बात करें 
क्वाइसी शब्द को तोड़ें 
अहम का मुख मोड़ें 
ठाकरे शब्द को निचोड़ें 
भाजपा का सच घोलें 
गांधी को बताएं, सच बोलें 

आओ खुद को जला दे 
शब्दों को मिटा दे 
रूमानी गालियों को 
फड़फड़ाती धड़कनों के दर्द 
किस्मत औ उलफत की कहानियों को 
खुदा औ खुदा के डर 
गरीबी,लाचारी औ बेबसी 
लड़खड़ाती जुबानों की तन्हाइयों को 
धर्म का दंभ 
रिवाजो के बोझ 
समाज के बंधन
दम घोटते संस्कारों को। 

आओ मै औ तू मिटते है 
मै राम मिटता हु 
तू रहमान मिटाना 
मै हिन्द मिटाता हु 
तू पाक मिटाना ।
मै अपना मिटाता हु 
तू गैर मिटाना 
मै चुनाव मिटाता हूँ 
तू मतदान मिटाना ।
मै कानून मिटाता हु 
तू संविधान मिटाना।
मै तू मिटाता हु 
तू मै मिटाना ।

आओ इशारों मे बात करें
वादी को शब्द विहीन कर दें 
माथे के सिकन को समझें
मानवता की गर्माहट बिखरने दें  
कुलकुलाहट गूंजने दें 
धड़कन संगीत सुने 
साँसों की गहराइयों को जाने 
मुखरित अम्बक पहचाने
अमिय आमोद  पुष्प बिछाएँ 
धरित्री को विहार माने 
शब्दों को मिटा दें 
इन्सानों को जिंदा कर दें ।

1/03/2013

"क्या गिला मै क्या हूँ "


क्या पता मै कहाँ हूँ 
क्या गिला मै क्या हूँ 
वक़्त चलता जाए
मै बढ़ता जाऊँ
जब चाह मौन रहूँ 
जब मन रों दूँ 
जब चाह मै गाऊँ
जब  राह मिले चल पड़ूँ
क्यों राह को मैं जानूँ
क्यों वादा करूँ
क्यों आस रखूँ 
देखना हो राह अगर 
खुद का मै इंतजार करूँ
मै मदिरा पान करूँ 
या बिन पीये टल्ली हो जाऊँ
होना हो बहसी अगर 
खुद को मै गिल जाऊँ
क्यों व्यापार करूँ 
क्यों कोई सत्ता स्वीकार करूँ 
मै मस्त दरिया बन बहूँ 
पंछी बन उड़ जाऊँ 
मंजिल जिंदा रहे 
मै मिट जाऊँ